सोचता है मन
सोचता है मन
गैरो का ख्याल रखना शायद आसान
है बहुत
मगर अपना ख्याल कैसे रखा जाए ये
सोचता है मन
आते जाते विचारों को पंख देना आसान
है बहुत
मगर विचारों को कैसे अपनाया जाए ये
सोचता है मन
इन दौड़ते भागते पलों को
मंजिल देना आसान है बहुत
मगर पलों संग कैसे एकांत में रहा जाए
सोचता है मन
काले घुमडते मेघ को वर्षा की
बूंदें बनाना आसान है बहुत
मगर बूंदों से मन की तपिश कैसे शांत हो
सोचता है मन
तीखी धूप के स्वर्णकणो से चमक पाना आसान है बहुत
मगर स्वर्णकणो के साथ तिमिर को कैसे
हराया जाए सोचता है मन।
