गुज़रता वक़्त
गुज़रता वक़्त
वक़्त की शाख से एक और पत्ता गिर गया,
कुछ दिन पहले आया था जो नव वर्ष बनकर वो पुराना बनकर गुज़र गया.
कई ख्वाब मुक़्क़मल हुए, असंख्य यादें बन गयीं,
गुज़रे लम्हों की स्मृति कुछ ऐसे अंदाज़ में दिल के पन्नों पर अंकित हो गयीं.
अनुभव हुए असंख्य जो जीने का अंदाज़ बदल गए,
बेहतर नज़रिये, बदले तेवर देकर जीवन का नव-निर्माण कर गए.
वक़्त के ताने बाने और तिनके फिर से लड़ी में पिरोये जाएंगे,
कल फिर कुछ नये अफसाने बनेंगे,कुछ पुराने ही दोहराये जाएंगे.
वक़्त की शाख से भले ही एक और पत्ता गिर गया,
जीवन को नयी दिशा दिखला कर मार्गदर्शक के रूप में सदा के लिए उसका अभिन्न अंग बन गया।