एक बूँद इश्क़
एक बूँद इश्क़
रिमझिम गिरती बूंदों और घन -घन गरजते मेघोँ से सराबोर सावन के सुहावने मौसम में एक प्याली चाय की चुस्कियों का संग में मज़ा लेने आ जाना,
ज़रा सी फुर्सत निकालकर एक फुहार इश्क़ की कुछ इस अंदाज़ में हम पर बरसा जाना.
तन्हाई के आलम में अनंत खुशियों का खजाना संग ले आना,
पकौड़ों के संग चटनी का मज़ा फीका है तुम्हारे बिना इसलिए फुर्सत निकालकर इस ओर चले आना.
हाँ!तंग हैँ सड़कें बहुत,जाम भी तगड़ा पसरा है पर मुश्किलों को पार करके हमदम के संग चलने का मज़ा ही कुछ और है इसलिए तुम कुछ भी करके बस आ जाना,
यूँ तो मुझ पर बहुत से एहसान किये हैँ तुमने, एक और करम हम पर करने की ज़हमत इस तरह उठा जाना.
बहुत दर्द और तड़प छुपी है बहुत कुछ बयां करती आंखों में मेरी, तुम बोले बिना ही आँखोँ की भाषा आँखोँ से समझ जाना,
ऐसी संवेदनशील बेला पर अश्रुओं का बहना तो लाज़मीं है, तुम बरसों से ह्रदय की गहराई में छुपी वेदना को निकल दे जाना.
एक चाय की, दूसरी स्नेह की तीसरी अनगिनत प्रेम की और अनगिनत चुस्कियां परवाह की संग लेकर तुम बिखरे इस दिल को समेट जाना,
बारिश तो बस बहाना है तुम्हेँ अपने पास बुलाने का, आज तुम बस सूने दिल की धरा पर कुछ बूँद इश्क़ की इस अनुपम अंदाज़ में प्रवाहित कर इसे चैन का अमृत-प्याला पिला जाना.

