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अनजान रसिक

Abstract Inspirational

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अनजान रसिक

Abstract Inspirational

वो स्त्री है वो कुछ भी कर सकती है

वो स्त्री है वो कुछ भी कर सकती है

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वो स्त्री है वो कुछ भी कर सकती है,

मगर कदम-कदम पर ठोकर खाती और तिरस्कार की पात्र वो बनती,

कैसी विडंबना है कि वो स्त्री ही है जो हर जुल्म सह कर भी कुछ नहीं कर सकती. 


वो स्त्री है वो कुछ भी कर सकती है,

मगर कभी कपड़े पूरे नहीं थे इसलिए उस पर ज़माने की बुरी निगाह थीं,

और जब कपड़े पूरे थे तब चाल चलन ठीक नहीं थे उसके ये ज़ुल्मी नरभक्षकों की उसका शोषण करने हेतु दूसरी दलील थी,

कैसी विडंबना है कि वो स्त्री ही है जो हर जुल्म सह कर भी कुछ नहीं कर सकती.


वो स्त्री है वो कुछ भी कर सकती है,

ख्याति और प्रसिद्धि को आदमी की देन व तिरस्कार और बदनामी को स्त्री के सुपुर्द कर दिया जाता है,

कैसी विडंबना है कि वो स्त्री ही है जो हर जुल्म सह कर भी कुछ नहीं कर सकती.


वो स्त्री है वो कुछ भी कर सकती है,

चाँद पर जा सकती है, पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती है,

एयरफोर्स से लेकर

नेवी तक में निर्भीकता से कार्य कर सकती है,

पर इस सब के बावजूद भी कदम-कदम पर छोटा महसूस करा कर उसके पंख कतरने की हर संभव कोशिश की जाती,

कैसी विडंबना है कि वो स्त्री ही है जो हर जुल्म सह कर भी कुछ नहीं कर सकती.


वो स्त्री है वो कुछ भी कर सकती है,

वो एक हुंकार भर ले अगर तो अम्बर झुका सकती है और धरा हिला कर त्राहि - त्राहि मचा सकती है,

पर आज के कलयुग में उसकी आवाज़ खामोश करने वाले तो हज़ारों हैं पर उस पर हुए अत्याचार का संज्ञान लेकर वाला कोई नहीं है,

कैसी विडंबना है कि वो स्त्री ही है जो हर जुल्म सह कर भी कुछ नहीं कर सकती.


वो स्त्री है वो कुछ भी कर सकती है,

एक आदर्श बेटी, एक ममतामयी माँ और एक कर्तव्यपरायण पत्नी बन जगत का उद्धार कर सकती है,

मगर नारी के चरित्र पर ही लांछन लगाने से पहले एक क्षण भी नहीं विचारता ये समाज,

कैसी विडंबना है कि वो स्त्री ही है जो हर जुल्म सह कर भी कुछ नहीं कर सकती.


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