STORYMIRROR

अनजान रसिक

Others

4  

अनजान रसिक

Others

मैंने छोड़ दिया

मैंने छोड़ दिया

1 min
6


जब शिकवों का कद शिकायतों से ऊंचा हो गया , हमने लोगों को मनाना छोड़ दिया,

नज़रअंदाज़ करना ज़्यादा सीख लिया , बात-बात पर जिरह करना छोड़ दिया ।

जब तनहाई में ही मिलने लगी तसल्ली , हमने महफ़िलों में जाना छोड़ दिया ,

जब एक रोज़ एक चेहरे से हुए मुखातिब,हमने जमाने से रूबरू होना छोड़ दिया ।

जब पता चला कि बहुत कुछ बयां करता है कोरा कागज़ भी , हमने कश्ती बनाना छोड़ दिया ,

हर कोई ना जान पाये दिल की गहराई में दफन राजों को इसलिए हमने जताना और बताना छोड़ दिया।

काम का लगा जिसे उसने यथासंभव आज़माया इसलिए हमने मतलबी जमाने से वास्ता रखना छोड़ दिया ,

हर इंसान के इस कलयुग में दो चेहरे व अनगिनत रंग हैं,इसलिए किसी से बेवजह दिल लगाना छोड़ दिया ।

मैं कोई कागज नहीं जो किसी मोहर का मोहताज हो जाऊँ इसलिए दायरों और हदों की फिक्र करना छोड़ दिया,

जिसके साथ मन मिल गया ,उसे फिर कभी छोड़ा नहीं और जिससे मन लगा नहीं ,उसे हमेशा-हमेशा के लिए उसके हाल पर छोड़ दिया । 



Rate this content
Log in