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Goldi Mishra

Drama

4  

Goldi Mishra

Drama

सपनों सी

सपनों सी

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4

खेतों की हरियाली ने पूछा क्यूं मन है बहका सा ,

आज देखा एक ख्वाब थोड़ा पूरा थोड़ा अधूरा सा,

ये खेत बाग और आंगन ये सब मुझसे जुड़े से है,

बचपन से इनको सीचा ये मेरे साथ हर मौसम भीगे से है,


बाबुल का साया नही अब ये छत ही मेरा साथी है,

जिम्मेदारियों से बंधी सी कभी निहारी ना सड़क शहर की,

इस भीगी सरसो सी,

गाती उस कोयल सी,


ये रिश्ते नाते भी अजीब है,

ये रिश्ते मैंने बुने नही ये मिले मुझे बन कुदरत के नज़राने से है,

ख्वाब मेरे मैं देखू फिर छूना उन्हें चाहूं,

नींद बैरन ये कैसी टूटी मैं चाह कर भी ख्वाब फिर ना बुन पाऊं,


आंगन में पसरी ये धूप लगे अब साथी सी,

मेरे साथ ही चलती साथ ही ढल जाती,

ख्वाब किताबों के पन्नो में कर दिए,

गीतकारी और लिखारी ना जाने कब गांव की धूप बन धूमिल हो गए,


मुझमें आस बुझी नही उम्मीद का दीया जलता है,

मैं बंधी जिम्मेदारियों से पर मेरा ख़्वाब मुझे मुसकुराहट दे जाता है।


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