सपना
सपना
कुछ बताना है तुम्हें,
जरा पास आ के तो बैठो।
कुछ सुनाना है तुम्हें,
उन झुकी नज़रों को यूँ न देखो।
कुछ कमी थी ज़िन्दगी में मेरे,
शायद ये कुछ नया सा आगाज़ है।
बेशक ये कोई मोहब्बत नहीं,
पर दिल से निकली वो बात है।
खो गया था पहले कुछ मेरा
तेरे आने से मिला कुछ ख़ास है।
तेरा मेरे संग चलना,
मानो मन की मंजिल अब पास है।
तुम न ख्यालों में हो न ही सपनों में मेरे,
पर आँखों में उतरा वो नूर महज एक इत्तिफ़ाक़ है।
एक अरसे से उस आईने में अपना अक्स नहीं देखा था,
जैसी दुनिया की रची माया से मेरा दिल बेबाक है।
न जाने कितने ही एहसास मेरी नज़रों में उतर आये थे,
जब आँख खुली तो देखा ये हक़ीक़त नहीं,
ये वो सपना दिमाग की कल्पना का भाग है।