तन्हाई के ख्याल
तन्हाई के ख्याल
उस रात दिल के किसी कोने का फिर एक टुकड़ा टूटा था,
नम हुई उन आँखों से वो सपना किसी ने लूटा था।
कसूर यही था कि उसके दिल का हाल जानना चाहती थी,
उस रात उन बाहों से उस शख्स का साथ छूटा था।
ज़िद थी मेरी की उससे बात करूं
पता नही मासूमियत में मेरी , हमदर्द मेरा झूठा था।
सुनती रही पूरा दिन नुमाइशें उसकी,
यक़ीन आया तो देखा हर रिश्ता मुझसे रूठा था।
उस रात दिल के किसी कोने का फिर एक टुकड़ा टूटा था,
नम हुई उन आँखों से वो सपना किसी ने लूटा था।
करती ऐतबार उन आँखों पर या दिल का करती में यक़ीन,
देख उस शख्स की काया बदल वो लम्हा मुझसे छूटा था।
हर रास्ते पे पेहरा था उसका,
हैरान थी सच जान की हर वादा किया सब झूठा था।
सवाल करती खुद से या उनका जवाब में खुद को देती,
तन्हा रात में बैठी तो मेरा साया भी मुझसे रूठा था।
उस रात दिल के किसी कोने का फिर एक टुकड़ा टूटा था,
नम हुई उन आँखों से वो सपना किसी ने लूटा था।