दिल के जज़्बात
दिल के जज़्बात
कुछ कहना है आज कुछ सुन्ना भी है,
रात तो जाग कर गुजरी वो लम्हें को ठहरना भी है।
कोई नही जानता वो मेरे अंदर की कैफ़ियत,
दरिया तो आग का है पर अब उसमें तैरना भी है।
मुश्कान चेहरे पे तो रोज़ रहती है मेरे,
चार दिवारी में बंद वो अकेलापन दूर करना भी है।
क्यों हु किस लिए हु क्या हु जवाब नही मेरे पास,
जीने के इन्तेहाँ में कुछ कर गुजरना भी है।
कर लेती हूँ चंद बाते खुद से वो रात के अंधेरे में,
रोशनी में आकर अभी वो दिखावा करना भी है।
नही हु में न होना चाहती हूं ऐसी,
टूटी हु बहुत अब उन टुकड़ो को जोड़ना भी है।
इतनी जल्दी नतीजे पे मत पहुँचो थोड़ा सब्र तो करो जाना,
अभी तो जुड़ी हु फिर जुड़ कर भिखरना भी है।
कर लो यकीन मेने बहुत कोशिश की है बदलने की,
मंजिल तो मिली पर उस राह पर अभी चलना भी है।
मन हो कभी तो आना दिल का हाल पूछने,
रात तो ढल गई तेरे इंतज़ार में पर वो
अधूरी किताब को पूरा करना भी है।