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Renu kumari

Tragedy

4.5  

Renu kumari

Tragedy

अकेलापन

अकेलापन

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मेरे कमरे में एक कोना है जहाँ रोशनी नही आती।

टूट के जब बिखरती हूँ मैं वही चली जाती।

बैठ उस अँधेरे में मानो खुद से जंग छिड़ जाती।

दुनिया से बच के हमेशा खुद से हार जाती।

दर्द होता है बहुत दिल मे जब कोई नही होता,

बिन आवाज़ में चीखती हूँ और वही रह जाती।

खामोशी में खुद की सिसकियां सुनती हूँ,

और अंदर के शोर से उस कोने में चुप जाती।

लगता है मानो अकेलेपन से कोई अलग ही रिश्ता है,

जितना दूर में जाना चाहू हमेशा उसके करीब चली जाती।

उस अंधेरे में कुछ नही दिखता मुझे,

बस बेठ वहाँ में खुद से डर जाती।

लगता है मानो मन का खालीपन मुझे मार ही डालेगा,

ज़िन्दगी से लड़ कर खुद से मर जाती।

हंसती हूँ हर महफ़िल में खुशियां बिखेरती हूँ,

पर जब अपने कमरे में आ उस कोने में रो जाती।

यूँ कतरा कतरा मरना मुझे भी पसंद नही,

मौत भी अब मजे लेती है हर बार मजाक कर चली जाती।


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