STORYMIRROR

Mamta Singh Devaa

Tragedy

4  

Mamta Singh Devaa

Tragedy

अतीत/वर्तमान

अतीत/वर्तमान

1 min
341


मैं तुमको अच्छे से समझ गया हूॅं

दो चार मुलाकातों में वो कहने लगे

मेरी आदतों से वाक़िफ हो

वो ख़ुद को बदलने लगे,


जब मुलाकातें बढ़ने लगीं

और ज़्यादा समझने का दावा करने लगे

मेरी बिना कही बात भी

वो ज़्यादा समझने लगे,


अब मुलाकातें रिश्तों में बदल गईं

समझ थोड़ी-थोड़ी कम होने लगी

अब तो कही हुई बात भी

सर के ऊपर से गुजरने लगी,


जो मुझको समझने का दावा करते थे

गैस के गुब्बारों को तरह फुस्स होने लगे

>

मैं तुम्हारे लिए ख़ुद को नही बदल सकता

रोज़ -रोज़ और बार-बार वो कहने लगे,


दिन-महीने-साल बढ़ते गये

समझ और भी घटने लगी

तुम मेरी समझ से बाहर हो

ये जुमला रोज़ मैं सुनने लगी,


इस क़दर समझ को समझने वाले

हर समझ से बचने लगे

आहिस्ता-आहिस्ता करके

वो और नासमझ होने लगे,


प्रेम में कौन किसको कितना समझ पाया है

ये समझना बेहद मुश्किल है

जीवन भर प्रेम को कोई समझ नहीं पाता

ये सच बड़ा क़ातिल है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy