मेरी कहानी के पहलू
मेरी कहानी के पहलू
हम खोए थे, खूब रोए थे।
कई रातें ऐसी गुजारी,
जिनमें ना हम सोए थे।
क्या करें पहलू ही कुछ ऐसे थे
जो बनना था वो सपना रह गया
और जो पसंद न था वो हकीकत।
अजीब है ये जिंदगानी ,
सोचोगे कुछ ,होगा कुछ
चाहोगे कुछ ,पाओगे कुछ।।
इंसान को उसकी काबिलियत देख कर
उसको हर चीज़ देती है।।