आधार
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इस बात का क्या अर्थ हुआ?
हुआ जो भी , वो सब क्या व्यर्थ था?
मेरी बताई बातें, तूने एक भी न सुनी
तू खड़ा था वहीं , क्यों कुछ बोला नहीं ,कैसी वो बेहूदगी थी!
क्या मेरी चीखें तुझ तक नहीं थीं पहुंची ?
मैं मानूं उसको तेरी मर्ज़ी, या वो तेरी मुझ संग बदसुलूकी थी?
मेरे मान सम्मान पर जब सवाल उठे थे
मेरी मौन अवस्था पर जो बवाल हुए थे
उस समय तू कुछ बोला क्यों नहीं, जो सच का राज था वो तूने खोला क्यों नहीं?
मैं खड़ी रही , तुझे देखती रही, पर तू मौन था।
क्या तू वही था जिसपे मुझे यकीं था
अगर नहीं तो मुझे ये बता कि" तू कौन था"?
