पहचान
पहचान
आदिम था
मानव दिगंबर था
वन ही आवरण
विश्व का विस्तृत आंगन
पहचान ढूंढते
परिधानों में सिमट कर रह गया
विश्व टुकड़ों में बंटता गया.
अच्छा होता
मानव आदिम ही रहता
फ़िर विश्व न बंटता देशों में
देश न बंटता प्रांतों में
ना प्रांत सिमटते परिधानों में
बस पहचाना जाता वन से
केसरिया ऊर्जा से
निर्मल मन से
मानव बस मानव रहता।