जिस पर हम वारी जाएं
जिस पर हम वारी जाएं
पहला रिश्ता
जिस पर हम वारी जाएं - परिवार
दादा नाना के टखनों पर
दादी नानी की गोदी में
मां के आंचल में
पापा के कांधे पर ठहरा - परिवार
कौड़ी टिपरी के खेलों में
आंगन के झूलों में
लू के थपेड़ों, बारिश के रेलों में
लिहाफों की सलवटों में बसता - परिवार
बिन ताले की संदूकों में
दीवारों की उखड़ी रंगत में
खट्टी मीठी तकरारों में
अचार की फांक सा बंटता - परिवार
आंखों में पलते स्वप्नों में
स्वप्नों में घुलते रंगों में
रंगों के रंगीं पंखों में
नित्य नई उड़ान सजाता - परिवार
अपना अपना कहते कहते
तेरा मेरा होता जाता
कमरा कमरा बंटते बंटते
अब टुकड़ों में बसता जाता
हर मन में फ़िर भी रचता, रमता - परिवार।