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Dr. Anu Somayajula

Abstract

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Dr. Anu Somayajula

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पैसों का पेड़

पैसों का पेड़

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आंगन के कोने में

सिक्का बोया था छुटपन में

हम बच्चों ने

रोज़ डालते पानी

देखा करते आतुरता से

अब फूटेगी, कब फूटेगी कोंपल

कब सिक्के लटकेंगे 

पत्ते बन कर

कोंपल ना फूटी, दिन पर दिन बीते।


छोटी सी इक टहनी रखी

सिक्कों वाली बोतल में

रोज़ - रोज़ देखा करते

फूटती नन्ही, नाज़ुक जड़ों को 

सोचा करते

जड़ें सिक्के बन जाएंगी

बोतल सिक्कों से भर जाएगी

कुछ ना होना था न हुआ।


बो आए टहनी को

फ़िर से आंगन के कोने में 

टहनी तो पेड़ बनी

ना नोटों के पत्ते लटके

ना सिक्कों के फल - फूल उगै

पत्ते रहे 

पत्तों की ही सूरत में।


पैसे के पेड़ों की

इच्छा

बस इच्छा ही रही

नोटों की सूरत झरते पत्तों की

सपने में भरमार रही।



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