STORYMIRROR

Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

4  

Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

आखरी अलविदा माँ !

आखरी अलविदा माँ !

1 min
599

 कुछ सूना सूना सा कुछ तन्हा सा यह सफर रह गया

नाता टूट चुका, सोंचते ही आँसूं का दरिया बह गया। 


ए माँ तुम्हारा अनजाना सफर जो अब शरू हुआ 

लगता है कारवां हमारा कहीं अब कहीं ढह गया।


बीता हुआ कल कोई सपना नहीं ,है एक हकीकत 

न जाने आस्मां से यह कैसा रंग बह गया।


डर लगता है मुझे एक अनजाने सन्नाटे से 

तुम चल दी अपने रास्ते, मेरा सफर कुछ रह गया।


पड़ेंगे काटने यह सफर बस तेरे बिन अकेले अकेले 

क्यों है ऐसा लगता माँ, कुछ कहना सुनना रह गया।


जीवन है एक संगर्ष , उम्मीद एक पतवार 

चुपके से न जाने कौन यह कानों में कह गया 


अब राहें है जुदा हमारी , ठिकाने भी जुदा जुदा  

है तय मिलना एक दिन, होले से दिल अलविदा कह गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract