अनकहे
अनकहे
ये जीवन रिश्तों की दुनियादारी,
जिनमें कुछ कहे या
कुछ अनकहे की बात सारी,
जो कहे,
वो सामने दिखते,
और जो अनकहे,
वो नहीं दिखते,
परंतु छाप गहरी छोड़ते,
जन्मजन्मातर तक चलते।
इनमें सबसे सर्वोतम,
महोबत का रिश्ता,
कभी खट्टा कभी मीठा दिखता,
है इतना मजेदार,
बाकी सबको लगा देता पिछली कतार।
हर जगह ये काम आता,
अगर हो सच्चा,
तो फिर इंसान कभी मात नहीं खाता।
वक्त ऐसा आ जाता,
कि चोट मुझको लगती,
दर्द मैहबूब पाता,
और अगर चोट मैहबूब खाएं,
तो दर्द मुझे हो जाए।
इसको बनाने में कोई
खून का रिश्ता नहीं चाहिए,
बस मोहब्बत का जज्बा होना चाहिए,
एक बार ये हो जाए कायम,
तो फिर दुनिया में कुछ भी नहीं असंभव।
