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ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

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दिल और दिमाग

दिल और दिमाग

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उसके पास दिल और दिमाग दोनों हैं


दिल किसी नटखट बच्चे सा

हंसता, चहकता, ठुनकता रूठता, मचलता

और दिमाग

किसी बुजुर्ग सा शान्त, सयाना,गंभीर 


दिल जब भी अपनी सीमा से बाहर पैर निकालता

दिमाग उसका पैर तुरन्त वापिस खींच लाता

दिल जब भी बोलता सिर्फ अपनी खुशी चुनो

दिमाग सबके लिये खुशियां बटोर लाता


दिल को सबसे ढेर सारी शिकायते है

दिमाग की किसी से कोई अपेक्षा नहीं

दिल बार बार कहता है कि रूठ जाओ

दिमाग कहता मनायेगा कौन

दिल बार बार उदास होता, रोता

दिमाग डांटता ये आंसू क्यों

दिल जगह जगह अटकता, फिसलता

दिमाग मजबूती से सीधी चाल चलता


दिल सब पर अपना गुस्सा निकालने के लिये तैयार

दिमाग की अपनी विनती, मनुहार, समय का इन्तजार

दिल अपनी करना चाहता

दिमाग संयम रखवाता

दिल चीखना चिल्लाना चाहता

दिमाग शान्त करवाता

दिल भावनाओं में बहना चाहता

दिमाग हकीकत का आइना दिखाता

दिल डरकर आंखें बन्द कर लेता

दिमाग सच का हाथ पकडाता


दिल फूल की तरह नाजुक 

दिमाग पत्थर की तरह कठोर


दिल दिल है

दिमाग दिमाग है

न दिल दिमाग की सुनता

न दिमाग दिल की 

बरसों से दोनों साथ चल रहे हैं

लड रहे हैं, झगड रहे हैं


और वो

उसने दोनों का हाथ पकड रखा है

वो, न दिल को छोड सकती न दिमाग को

वो आज भी दिल और दिमाग की सुलह नहीं करा पायी है 

दिल और दिमाग की लड़ाई आज भी जारी है।


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