रात की कालिमा
रात की कालिमा
रात की कालिमा दिन के उजालों पर भारी,
चेहरे से नक़ाब उठाने की होती है तैयारी,
अपने ही बनाये पर्दे से बाहर निकलता मन,
खुद की जीत दिखलाती खुद से मैं हारी।
रात की कालिमा में अपना चेहरा नजर आता,
क्या खोया क्या पाया ये कहर सदा बरपाता,
अफ़सोस खुद पर है तारी होता कालिमा संग,
रूह आईना बना मुझे मेरी हकीकत दिखलाता।
रात की कालिमा दिन की भागदौड़ से सदा
चंद फुरसत के पल हमारे लिए है चुराते।
बेतरतीब साँसों को थके हारे वजूद को
जिंदगी के आपाधापी बीच कुछ पल दे जाता।
रात की कालिमा में ही स्व मूल्यांकन होता,
आत्ममंथन और आत्मचिंतन सदा होता,
सही गलत राहों को चुनकर के ये सदा,
जीवन में सदा ही सही का हमें राह दिखाता।