STORYMIRROR

Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

4  

Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

शांति का शून्य

शांति का शून्य

1 min
317



शांति की चाह में

हर कोई अशांत 

अंदर भी, बाहर भी

निकटस्थ भी, दूरस्थ भी

कहना भी मुश्किल, सहना भी मुश्किल

पहचानना भी मुश्किल, संभालना भी मुश्किल

क्या और क्यों की उलझन में

रिसता जीवन का हर पल

समझना और समझाना जरूरी

जीवन गणित की मजबूरी

सरल शाश्वत यह जीवन गणित 

सांसें घटती हैं, अनुभव जुड़ते हैं

अलग-अलग कोष्ठकों में,

हम बंद समीकरण बुनते रहते है

गुणा-भाग लगाते रहते हैं

जबकि अंतिम सत्य शून्य है 

ब्रह्मांड एक शून्य श्रृंखला

अज्ञात स्थानिक महत्व

अनंत शून्य में कहाँ अपना शून्य

शांति में शून्य की तलाश

हो सबका एकमेव प्रयास ।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract