दिवंगत पत्नी की और से अपने पति के लिए
दिवंगत पत्नी की और से अपने पति के लिए
सुनो सुन रहे हो
जब जा रही थी तुम साथ थे
सुकून था कि तुम पास थे
पर यंहा से जो देखती हूँ
तुम बेकस से लगते हो बेकरार दिखते हो
कहना है तुमसे कुछ जो कहा नही
समय कम रह गया काफी कुछ जिया नही
माना तुम्हारा गुस्सा पसंद नही था मुझे
पर अब चुप हो ये भी नागवार है
जियो की तुम जीते ही अच्छे लगते हो
ये जो मेरी कमी की नमी है
ये देखना भी दुश्वार है
तुमसे कहना है दिल को खोल दो
जो कहना है किसी को तो बोल दो
साथ ले लो किसी को जो तुम्हें सुकून दे
तुम्हारे सुकून से मुझे सुकून मिले
अच्छा सुनो एक काम करो
मेरे जो लगाए पौधे है उनके फूलों की खुशबू अब भी वंही है
उनकी खुशबुओं को अपनी सांसो मे भर लो
तुम बिखरे से अच्छे नही लगते मेरे लिए बस थोड़ा सा संवर लो
देखो वंहा आईने पे मेरी बिंदी लगी होगी, बिखरी होगी कुछ चूड़ियां मेरी दराजों में
उन्हें सहेज दो, समेट दो कि वो श्रृंगार था मेरा
उन्हें आदत है तुम्हें देखते ही मुस्कुराने की अब चीखती है जब तुम्हें टूटा सा देखती है
माना कि मेरे न होने का दर्द बहुत ज्यादा है
पर उसमे मेरा हिस्सा भी तो आधा है
यकीन करो मैं और ईश्वर मेरा तुम्हारे लिए नया उजाला लिख रहे है
तुम मुस्कुरा दो बस कि भंवर मे भी किनारा लिख रहे हैं
सुनो कि तुम्हारी पनियाली आँखे मुझे पसंद नही
पौंछ लो इन्हें कि इनमें बस नूर अच्छा लगता है
मैं जान थी तुम्हारी तुम जान मेरी थे
मेरी जान का ख्याल तो रखना बनता है।