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Kuhu jyoti Jain

Abstract Romance

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Kuhu jyoti Jain

Abstract Romance

खूबसूरत शाम

खूबसूरत शाम

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नदी के किनारे कभी 

बैठ के

जब सोचते होंगे तुम

क्या दूसरे किनारे पे 

मुझे देख पाते हो

या तुम्हारी अंतहीन अपेक्षाएं

आंखों में कुछ और 

आने ही नहीं देती


सुनो


इस खूबसूरत शाम 

और नदी के किनारे को 

ज़ाया न होने देना

मन को बहने देना अपने

पानी की तरह

कभी कभी 

किनारों के बाहर भी 

आ जाने देना 

हृदय को अपने 

प्रेम करने देना उसे भी 

अपने मन से

इतना कि

बह जाए सब चिंताए, 

धुल जाए सारी उदासी

और रह जाये बस 

पानी की तरह उज्ज्वल आत्मा



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