मैं क्या लाती तुम्हारे लिए
मैं क्या लाती तुम्हारे लिए
मैं क्या लाती तुम्हारे लिए
जो शबरी होती तो
बेर लाती
हर एक बेर खोजते हज़ारों बार तुम्हे याद किया होता
या शायद वो अमृत लाती
जो मीरा ने पीया
कृष्ण की भक्ति में
क्या मैं ला सकती थी वो बांसुरी,
जो कान्हा के अधरों पर लगी ही नही
राधा जी के जाने बाद
कुछ फूल शायद लाती तो
उनका रंग फीका सा लगता
तुम्हारी चमक के आगे
मैं क्या लाती तुम्हारे लिए
तुम्हारे लिए लायी मैं साथ
थोड़ा बचपना मेरा
थोड़ी नादानीयां
ढेर सारी हँसी मेरी
और मेरी शैतानीयां
थोड़ा सा सुकून जो
बैठ के मिलता है पानी के पास
कुछ कहे बगैर भी
परवाह करने का हुनर
लायी बहुत सारे पल जो जिये तुम्हारे बगैर फिर भी तुम्हारे साथ
मैं और क्या लाती तुम्हारे लिए
एक मेरे निःस्वार्थ, बेहद, बेपनाह प्यार के अलावा।