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Diya Pathak

Romance

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Diya Pathak

Romance

खो जाती हूं....

खो जाती हूं....

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जब सोचती हूं उसके बारे में, 

उसके उन एहसासों में खो जाती हूं,

जो उसके ना होने पर भी एक दस्तक सी दे ही जाते हैं.....उसके होने की, 

जब देखती हूं उसे अपने ख्वाबों में, 

तो उन ख्वाबों के समंदर में खो जाती हूं, 

जो सच तो नहीं होते मगर हां एक इल्म सा दे ही जाते हैं.... मुझमें उसके होने का, 

जब आता है वो मेरी यादों में, 

तो उन यादों की महफिल में खो जाती हूं, 

जो होती तो बेहद खास है मगर हां एक तलब सी दे ही जाती है.... उससे मिलने की, 

आखिर ये कैसी कशमकश है जिंदगी की, 

जो मैं भी शायराना हो जाती हूं,

जब भी उसकी आंखों में खो जाती हूं.........


अब तू तो नहीं....

अब तू तो नहीं... तेरी यादें है मेरे पास...

कैसे भूलूं इन यादों को...

जिस्म तो मेरा यहीं है, 

पर मेरी रूह है तेरे पास


होली में तुझसे रंगने की नटखट सी वो आस,

दीवाली का दीया जलाकर संग की थी अरदास, 

अब तू तो नहीं ...वो रंग और दीया ही है मेरे पास... 

कैसे भूलूं इन यादों को...

जिस्म तो मेरा यहीं है, 

पर मेरी रूह है तेरे पास


तेरी कसमें, तेरी बातों से मुझे था अटूट विश्वास, 

तू ही है मेरे सुनहरे जीवन का प्रकाश, 

अब तू तो नहीं...वो कसमें और बातें ही है मेरे पास...

कैसे भूलूं इन बातों को..

दिल तो मेरा यहीं है, 

पर मेरी धड़कन है तेरे पास!



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