कच्ची कलियाँ
कच्ची कलियाँ
आसमान में झिलमिल करते चाँद सितारे,
मिलने गोरी आजा चुपके नदियां किनारे!
आया बसन्त उपवन में खिली कलियाँ ,
लताओं पर उड़ती सप्तरंगी तितलियाँ!
मन चंचल बहकता जब कड़कती बिजलियाँ,
पराग पान को झूमकर बुलाती नवकलियाँ!
इत उत उड़त फिरत रस लोलुप भंवरों की टोलियां,
बसन्त के स्वागत में मधुर गीतों से गूँजती गलियाँ!
सताती बहुत भँवरों को ये ज़ालिम रसीली कलियाँ,
हवा से लहराकर पास बुलाती कोमल कलियाँ !
उपवन में चटक कर विकस रही कच्ची कलियाँ!
छूने से डरती हैं नाजुक लबों को ये अंगुलियाँ!

