ग़ज़ल - न सुनी कभी भी तुमने
ग़ज़ल - न सुनी कभी भी तुमने
ग़ज़ल - न सुनी कभी भी तुमने
न सुनी कभी भी तुमने; मेरे इश्क़ की कहानी।
जो दबी हुई है दिल में; वही बात है बतानी।
तेरे बिन जो जी रहा हूँ; वो मुझे लगे अधूरी,
जो बची है जिंदगी अब; तेरे साथ है बितानी।
ये नहीं है इतना आसां; कि मैं भूल जाऊँ तुमको,
ये नहीं है आज कल की; ये है दास्ताँ पुरानी।
मेरे आँसुओं की कीमत; मैं भला किसे बताऊँ,
जो छुए किसी के दिल को; तो हैं अश्क़ वरना पानी।
जो कभी मिले अचानक; यूँ ही राह चलते चलते,
तो ज़रा ठहर के जाना; न तू करना बदगुमानी।
है बहुत बड़ी ये दुनिया; हैं बड़े हसीन चेहरे,
तेरी बात ही अलग है; न तेरा बना है सानी।
तेरा शबनमी है चेहरा; तेरे होंठ मद के प्याले,
क्या बता तेरा इरादा; क्या है तूने मन में ठानी।
तेरी झील जैसी आँखों; में कहीं मैं डूब जाऊँ,
तुझे देखता रहूँ मैं; न नज़र पड़े हटानी।
जो मिले तेरी इज़ाज़त; तो सँवार दूँ ये ज़ुल्फ़ें,
तेरे गेसुओं की खुशबू; ज्यूँ महकती रात रानी।