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chandraprabha kumar

Romance

4  

chandraprabha kumar

Romance

सावन की झड़

सावन की झड़

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सावन की झड़ ला दोगे

सपने मेरे उलझ गये हैं 

आकर के सुलझा दोगे,

कब से आंख बिछाये 

राह में तेरी बैठी हूँ,

मन की पीड़ा लेकर के

पीड़ा को संभला दोगे

सावन की झड़ ला दोगे। 


मन मुस्काये दबा दबा सा

मन है सहमा सहमा सा,

तेरे बदले बदले तेवर

मौसम है महका महका सा, 

सावन की झड़ ला दोगे 

सपने मेरे सुलझा दोगे,

तपती लू बहुत सही हैं

अंधड़ भी मैंने झेले हैं। 


बागों में कहीं कोयल कूकी

झुकी डाल है बौरों से,

ऐसे ही मेरे मन आंगन में

तड़पन को सहला  दोगे,

अपने होकर भी दूर रहे

बहुत अपने से अब लगते हो,

सपना मेरा खो न जाये 

मन बहुत ही डरता है। 


विश्वासों  ने छला है इसको

कांटों ने बींधा है इसको,

मन तेरे में रमा रमा सा

तेरे बदले बदले तेवर ,

मौसम है महका महका सा

सपने सारे उलझ गये हैं

आकर के सुलझा दोगे, 

सावन की झड़ ला दोगे।।


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