छूट जाती है
छूट जाती है
कभी गुजरी कभी निखरी कभी बिखरी छूट जाती है
ये इश्क़ में आदमी की जिंदगी भी छूट जाती है।
कहाँ ख्वाबो से एक कारवाँ सफ़र पे आज निकला है
जहाँ मिलता नही रास्ता परस्ती छूट जाती है।
मेरा जब हाथ थामोगे कभी उस पार जाने को
जरा साहिल से कह देना कश्ती छूट जाती है।
किसी ने पूछ लिया हमसे जमीं पे आशियाना है
क्यूँ दिल में घर बनाने से बस्ती छूट जाती है।
कभी बुझती नहीं थी प्यास भी बरसात आने पर
बुझा सकती कोई प्यासी वो हस्ती छूट जाती है।
कोई लिखता होगा सच्ची कहानी मोहब्बत की
देखा इतिहास के पत्थर पे निशानी छूट जाती है।
मेरा गर शेर समझ ना आये तो मै खुद मिटा दूँगी
जरा नीतू" मोहब्बत हो तो शायरी छूट जाती है।
गिरह
बहुत तकलीफ़ होती है गिला क़िस्मत से क्या करना
जरा सी उम्र बढ़ती है मस्ती छूट जाती है।

