सुनो हम सफ़र
सुनो हम सफ़र
एक वादा निभा जाओ
डूब रही है धड़कन
उम्र की लौ आहिस्ता-आहिस्ता बुझ रही है, मेरे लब पर तुम जो साँसें छोड़ गए थे
वो खत्म हो गई है, एक जुनून ने जोड़ रखा है तन को साँसों से.!
आँखों को इंतज़ार ही नहीं यकीन है
तुम आओगे, अश्कों से धुली राह पर चलकर इस जन्म का आख़री पड़ाव है शायद.!
लो ये गज़ल जो गुनगुनाती मेरी ज़ुबाँ पर ठहरी थी दम तोड़ गई,
कोई गीतांजलि गा दो आकर साँस-साँस तुम्हें भर लूँ रूह तक तुम्हारी खुशबू
आ जाओ अब राह निहारूँ..!
"आ गए"
मेरी आँखों के यकीन की जीत हुई अब तुम्हारे हाथों आख़री आँच पाऊँ.!
सुनों हम सफ़र
मेरी ख़ाक़ पर खिलेगा पीला फूल
गुज़रो कभी उधर से ओर महसूस हो तुम्हारे जिस्म की महक तो समझ लेना मैं वही हूँ..!!
हौले से उठा कर बो देना आँगन तुम्हारे महकती रहूँगी, एक चाह बस तुम्हारे करीब रहने की.!
मोक्ष की सीढ़ी का मोह नहीं उस पार भी तुम्हारे इंतज़ार में जलना मंज़ूर है जब तक मिलोगे नहीं जलती रहूँगी।।