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Kanchan Prabha

Abstract Romance

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Kanchan Prabha

Abstract Romance

नाज है मुझको

नाज है मुझको

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252


मुझे कुछ और जमाने से क्या

उन पर मुझे बहुत ही नाज है

चाहने वाले तो उन्हें बहुत है मगर

उनके दिल पर सिर्फ मेरा ही राज है 

मुझे कुछ और जमाने से क्या

उन पर मुझे बहुत ही नाज है


उन्हें देखूँ उन्हें चाहूँ उनके साथ चलती जाऊँ 

अब अन्त समय तक बस यही काज है

मुझे कुछ और जमाने से क्या

उन पर मुझे बहुत ही नाज है 


लाख शोहरत पा भी लूँ दुनिया में 

साथ उनके चलना ही मेरे सर का ताज है

मुझे कुछ और जमाने से क्या

उन पर मुझे बहुत नाज है


उड़ने भी लगूँ गगन में पंछी की तरह

उनकी हथेली ही मेरी परवाज है

मुझे कुछ और जमाने से क्या

उन पर मुझे बहुत नाज है


कितने ही गीत लिखूँ मैं अपनी कलम से

हर गीत में छुपा हुआ उनका ही साज है

हमें कुछ और जमाने से क्या

उन पर मुझे बहुत ही नाज है



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