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Archana Anupriya

Abstract

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Archana Anupriya

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"पड़ोसी”

"पड़ोसी”

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न जाने क्यों शहरों में अब

पड़ोसी दिखाई नहीं देते

दरवाजों के खुलने और बंद 

होने से अंदाजा होता है कि

बगल में कोई रहता है…

खिड़कियों से झाँकती रौशनी

किसी के होने का सबूत देती है..

बगल से कभी- कभार

आती हैं आवाजें कई

कभी रोने की ,कभी गाने की 

तो महसूस होता है कि

पड़ोस में कोई अकेला नहीं वरन्

परिवार के साथ रहता है..

पुराने जमाने की तरह 

पड़ोसी से अब रोज की

मुलाकातें नहीं होतीं..

हम टोह लेते रहते हैं 

उनका होना, ना होना 

कभी खबर लगती है

 दूध वाले से, कूड़े वाले से 

कभी कुरियर वाला उनका कुरियर 

घर पर दे जाता है 

तो पता चलता है 

वह नहीं है अभी..

हम भी बिना इजाजत 

उनके घर नहीं जाते 

कुरियर भिजवा दिया करते हैं 

शाम- सुबह की सैर पर 

हम मिलते तो कई बार हैं 

चेहरे से पहचानते भी हैं

पर एक- दूसरे का पड़ोसी होना 

हमें पता नहीं होता..

पहले की तरह अब 

पकवानों का आपसी 

आदान-प्रदान भी नहीं होता है..

पहले पास पड़ोस में नींबू,मिर्च ,

अचार से लेकर खीर -मिठाई 

तक के व्यंजन 

एक दूसरे के घर में बारी-बारी 

यात्रा किया करते थे 

लेकिन यह सब अब

लगभग गुजरे जमाने की बातें हैं..

फिटनेस का फार्मूला अब

ज्यादा महत्व रखता है..

बिना पूछे या बगैर इजाजत 

अब व्यंजन भेजना 

शिष्टाचार के खिलाफ है..

पहले घर की छतें

मिलीं होती थीं एक दूसरे से 

हम साथ ही बिताया करते थे 

जड़ों की धूप और गर्मियों की रातें..

पड़ोसियों के रिश्तेदार 

हमारे भी रिश्तेदार होते थे 

बरसों-बरस हम

बँधे होते थे एक दूजे से

तीज- त्योहार, शादियों में 

साथ साथ खुश होना 

दुख में साथ-साथ गमगीन होना

दिनचर्या में शामिल होता था

हमारे रिश्तेदार तो बाद में आते 

पड़ोसी ही साथ खड़े होते थे 

पर अब हालात बदल चुके हैं 

विकसित हो गया है ज्ञान और इंसान 

तभी बिना इजाजत शामिल होना

पड़ोसियों के व्यवहार में

कहलाता है दखलंदाजी..

अब यदि पहचान हो भी जाये

तो मिलने पर मुस्कुराना

हाय-हैलो कहना फिर,

अपने-अपने काम पर चल देना

यही शिष्टाचार है,

पड़ोसी धर्म है..

छोटी-छोटी जगहों पर

या गाँव - घरों में

अब भी पड़ोसी मिल जाते हैं..

पुराने रीति-रिवाजों का चलन

कभी-कभी आज भी दिख जाता है,

पर संख्या घटती जा रही है

दिन-ब-दिन समाज में

अब किससे करें शिकायत

किसे कह दें हम दोषी..

सारा परिवेश बदल चुका है

अब बदल गया है पड़ोसी...।

           


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