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Archana Anupriya

Abstract

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Archana Anupriya

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कर्म की गठरी

कर्म की गठरी

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गठरी लादे कर्मों की 

चल रहा हर इंसान 

पोटली पाप और पुण्य की 

बस खोलेंगे भगवान.. 

बदल जाएगा क्षण में सब कुछ

भाग्य, तकदीर, हाथों की लकीरें

कर्मों पर ही होगा आधृत 

फूल,बहार, बेड़ियाँ,जंजीरें.. 

झोली में गर होंगे दुष्कर्म 

सपनों की पोटली बिखर जाएगी

सत्कर्म ही संवारेगा जीवन 

रंगों सी जिंदगी निखर पाएगी..

काँटें तो हर राह में होंगे 

क्यों न चलें संभल संभल कर 

प्रेम-गुलाब ही खिलें जहाँ में

परमार्थ चुनें सबको अपनाकर..

पाप की गठरी तो भारी होगी

चलना हो जाएगा दूभर 

खुशी की पोटली हल्की होगी

निकलें घर से खुशियाँ बाँधकर..

वक्त है कम, काम है ज्यादा 

सफर है छोटा, राह है लंबी.. 

साथ गठरी सत्कर्म की रखें

एकांकी आदमी, मंजिल है मुक्ति!

      


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