धुंधली सी यादें
धुंधली सी यादें


धुंधली सी यादें, साए की सूरत,
गुज़िश्ता लम्हों की गुमसुम हिकायत
रुख़्सत हुईं जो महकती बहारें,
राहों में बिखरीं वीरान इबारत।
लब पे ठहरी हैं नज़्में अधूरी,
दिल में दबी हैं हसरतों की हरकत।
वो लम्हे, वो बातें, वो ख़्वाबों के नग़मे,
अब बन गए हैं बस एक हिकारत।
बरसों की गर्दिश, बरसों की दूरी,
सन्नाटों में है ग़मों की सियासत।
अब भी कहीं से सदा ये बुलाती,
"लौट आ, फिर से कर ले मुहब्बत..."