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poonam Godara

Abstract

3.4  

poonam Godara

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तेरा गाँव अब बदल रहा है

तेरा गाँव अब बदल रहा है

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बूढ़े बरगद की छाँव तले पसरे सन्नाटे ने

आज कहा मुझसे कि

तेरा गाँव अब बदल रहा है

निकट का शहर इसे निगल रहा है

तो याद हो आया मुझे वो पल 

जब बरगद के नीचे

ताश खेलने वालों की

महफिल सजा करती थी,

वैशाख के महीने में दादी

बरगद की पूजा किया करती थी

बरगद के पतों से दादी

हमारे लिए चश्मा बनाया करती थी,

कभी-कभार कोयल भी

अपनी प्यारी सी धुन सुनाया करती थी।


कमरे के आगे बने चौक के सूनेपन ने

आज कहा मुझसे कि

तेरा गाँव अब बदल रहा है

निकट का शहर इसे निगल रहा है

तो याद हो आया मुझे वो पल

जब दादाजी चौक पर बैठे-बैठे 

हमें कहानियां सुनाया करते थे,

पापा उन्हें हुक्का भर के दिया करते थे,

दादाजी के कमरे के रोशनदान मे

हम खिलौने छुपाया करते थे

और खिलौने निकालते वक्त अक्सर

ततैया खा जाया करते थे

फिर सूजे हुए चेहरे को हम 

दोस्तों से छुपाया करते थे।


भईया के चेहरे की गंभीरता ने

आज कहा मुझसे कि

तेरा गाँव अब बदल रहा है

निकट का शहर इसे निगल रहा है

तो याद हो आया मुझे वो पल जब

वो पाँच रूपये के लिए

अपनी मुट्ठी खुलवाया करते थे,

पेन देने के बदले मे 

गाल पर पाँच थप्पड़ लगाया करते थे,

अन्ताक्षरी में चीटिंग कर जाया करते थे,

क्रिकेट के प्लेयर्स के नाम रटवाया करते थे।


छोटी सी नहर मे बहते पानी की शान्ति ने

आज कहा मुझसे कि

तेरा गाँव अब बदल रहा है

निकट का शहर इसे निगल रहा है

तो याद हो आया मुझे वो पल जब

दिनभर हम नहर में नहाया करते थे,

कभी छुपनछुपाई तो कभी

पत्थर ढूंढना खेला करते थे, 

जब माँ आती थी लाठी लेकर 

तब पानी में छुप जाया करते थे,

जब गुम हो जाया करती थी साबुन तो

भूल जाने का बहाना कर जाया करते थे,

सर भी चकरा जाया करता था जब 

भईया पानी में डूबा दिया करते थे।


जोहड़ की जगह बनी अट्टालिका ने

आज कहा मुझसे कि

तेरा गाँव अब बदल रहा हैं

निकट का शहर इसे निगल रहा हैं

तो याद हो आया मुझे वो पल जब

जोहड़ पानी से लबालब भरा रहता था

जिससे गायें अपनी प्यास बुझाया करती

वही भैंसे इत्मीनान से नहाया करती थी

उन्हें निकालने के लिए हम

पत्थर मारा करते थे

पत्थर से काम न चलता तो

जोहड़ में उतर जाया करते थे।


बारिश मे भीगे टीले पर छायी खामोशी ने

आज कहा मुझसे कि 

तेरा गाँव अब बदल रहा हैं

निकट का शहर इसे निगल रहा है

तो याद हो आया मुझे वो पल जब 

बारिश आते ही हम टिल्लों पर 

चले जाया करते थे

थैली को रेत से भरकर

शिखर से फिसला करते थे

कभी वहाँ घर तो

कभी मन्दिर बनाया करते थे।


नीम की टहनी के खालीपन ने

आज कहा मुझसे कि

तेरा गाँव अब बदल रहा हैं

निकट का शहर इसे निगल रहा हैं

तो याद हो आया मुझे वो पल जब

हम उस टहनी पर 

झूला सजाया करते थे

झूलने के लिए

लम्बी कतार लगाया करते थे

कभी-कभी रस्सी टूट जाया करती थी

और हम धड़ाम से गिर जाया करते थे।


बैर के पेड़ के अकेलेपन ने

आज कहा मुझसे कि

तेरा गाँव अब बदल रहा है 

निकट का शहर इसे निगल रहा है

तो याद हो आया मुझे वो पल जब

पापा पेड़ पर चढ़कर 

हमे बैर तोड़ दिया करते थे

इस दरमियां कई बार 

फट जाया करता था उनका कुर्ता 

तब माँ उन्हें जमकर डाँट दिया करती थी

पेड़ पर टंगें पत्थर के गिरने से

चोट लग जाया करती थी और

दर्द होने पर भी हम ये बात घरवालों से

छुपा जाया करते थे।


गाँव के रास्ते पर दौड़ती फोर्चुनर ने

आज कहा मुझसे कि

तेरा गाँव अब बदल रहा हैं

निकट का शहर इसे निगल रहा हैं 

तो याद हो आया मुझे वो पल जब

हम रोज बैलगाड़ी पर चढ़कर

मवेशियों के लिए चारा लाया करते थे

पाप लगने के डर से 

कभी-कभी बैलगाड़ी से

उतर जाया करते थे।

 


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