तो बेश़क चले आना.....
तो बेश़क चले आना.....
तेरी थकी हुई
ये आखें
कहती है मुझसे
तू रात भर
रोया हैं
उसकी याद में
तेरी पलकों तले छुपा
ये दर्द
कहता हैं मुझसे
तू रात भर
तड़पा है
उसकी जुदाई मे
तेरे लबों की
ये खामोशी
कहती है मुझसे
कुछ अनकही सी बाते हैं
तेरे दिल मे
जो बताना चाहता है
तू उसे
पर शायद वो
सुनना नही चाहती
तेरे दिल की
ये बैचेनी
कहती है मुझसे कि
ढे़र सारे सवाल है
तेरे मन मे
जिनका जवाब
चाहता हैं तू उससे
लेकिन जवाब शायद वो
देना नहीं चाहती
तेरी ये तन्हाई
कहती है मुझसे
कि भीड़ मे भी
अकेला रहता हैं तू
क्यूँकि साथ वो
अब चलना नही चाहती
जानती हूँ
तेरी आदत नही है
अपने गम बाँटने की
तभी तो तू
आँसू छुपा
हर रोज मुस्कुरा देता हैं
न जाने ये तेरा अहम हैं
या है कोई पछतावा कि
उसकी बेव़फाई के किस्से
तू हर महफिल मे सुना देता हैं
पर मुझसे तो
हर बात तू छुपा लेता है
जानती हूँ
हिस्सेदार नहीं बनाना
चाहता तू मुझे
अपने दर्द का
लेकिन फिर भी
अगर कभी दिल करें
वापस लौट आने को
तो बेशक चले आना।