माई बेस्ट फ्रेंड
माई बेस्ट फ्रेंड
इस अनजान से शहर
औरनये सफर की तरफ
जब बढा़ये मैने कदम,
तब बिल्कुल नादान और
अकेली थी मैं,
नहीं जानती थी
क्या सही है और
क्या है गलत,
कौनसा चेहरा
वफादार है और
कौनसा चेहरा हैं गद्दार,
बस फिक्र थी तो
सिर्फ अपने सपनों की
और इस नादानी को
न जाने कैसे तुमने
महफूज रख लिया,
अपने किरदार को
तुमने निभाया भी तो
इतनी खूबसूरती से कि
मुझे कभी
महसूस ही नहीं हुआ कि
ये दुनिया
बड़ी खुद़गर्ज है
क्यूंकि तू मेरे साथ जो
खड़ी थी
जिन्द़गी के हर मोड़ पर,
मेरी हर बेवकूफी पर तू
मुस्कुरा दिया करती थी
और फिर हर रोज
मैं वो बेवकूफी दोहरा
दिया करती थी,
और इसी नादानी मे
एक खूबसूरत सी
गलतफहमी जन्मी
मेरे मन में
कि मेरे सपनो के सफर का
हर सख्स
तुम्हारी तरह
मेरा अपना सा होगा,
जितना हसीन मेरा
सपना हैं
उतना ही खूबसूरत
इस शहर के लोगों का
दिल भी होगा,
पर ये गलतफहमी
जी नहीं सकी
ज्यादा वक्त तक,
क्यूंकि जल्द ही
बेनकाब हो गये वो चेहरे
जो दूर से बडे़
पाक और हसीन दिखाई पड़ते थे,
और जब लोगों ने
पन्नों पर बिखरे
अल्फाजों को देखकर कहा कि
अरे वाह!
"आप इतना अच्छा कैसे लिख लेती हैं"
तो एक खूबसूरत सी वजह थी
मेरे पास बताने को कि
एक वक्त था
मेरी जिन्दगी में
जब मैं कुछ बिखरे हुए से
शब्द लिखा करती थी
लेकिन वो इन बिखरे लफ्जों को
मेरे खूबसूरत से जज्बात
बता दिया करती थी
और फिर
उसकी हर छोटी सी तारीफ
मेरा हौसला बढा़ दिया करती थी।