न जाने क्यों वो रास्ता भटक गया
न जाने क्यों वो रास्ता भटक गया
जब आयी थी मैं
इस दुनिया में
तब न जाने
मैं कैसी दिखती थी
पर जब कहते थे तुम
कि मैं जन्नत से उतरी
कोई परी सी
लगती थी,
तो अपना साँवला सा चेहरा
बार बार मै
आइने में
निहार लिया करती थी,
माँ कहती हैं कि
जब कभी
लग जाती थी चोट मुझे
तब तू
क्रिकेट की पारी छोड़
मेरे जख्मों पर
मरहम लगाया करता था
बहुत प्यार करता था ना
तू मुझे,
तभी तो हर वक्त तू
मेरे आसपास रहा करता था,
याद है मुझे
वो पल
जब तू 15 अगस्त वाले दिन
मेरे लिए नन्हा सा
तिरंगा लाया करता था,
जब कभी लेट हो जाते हम
स्कूल के लिए तैयार होने में
तब तू झट से
मेरे बिखरे बालों की
चोटी बना दिया करता था,
लेकिन फिर अचानक से
सब क्यूँ बदल गया
क्यूँ तू हर रोज
घर से गायब रहने लग गया,
कितनी खुश थी ना
मैं उस शाम जब
दो महीने बाद तू
घर आया था
मैंने उस पल कसकर
गले लगा लिया था तुम्हें
लेकिन तूने तो देखा तक नहीं
अपनी नन्हीं सी गुडिया को
और चले गये थे
अपने कमरे में,
उस दिन
अम्मी-अब्बू
कितना रोये थे ना
तेरे कदमो में गिरकर
लेकिन तूने तो चुप तक
नहीं कराया उन्हें
इतना बेरहम
आखिर तू कैसे बन गया
दूसरे दिन
उठते ही
ये सोचकर गयी थी
मै तेरे कमरे में
कि तू भले ही रूठा हो
सारी दुनिया से
मगर
अपनी गुडिया के मनाने पर तू
जरूर मान जायेगा
लेकिन तू तो
था ही नहीं
अपने कमरे में
कितनी आसानी से
तू अकेला छोड़ गया था ना हमें,
तू चला गया
न जाने कौनसी दुनिया में,
लेकिन मेरी
भोली सी मुस्कान
क्यूँ तू अपने साथ ले गया
कितना इन्तजार किया था
मैंने तेरे लौटने का
लेकिन
क्यूँ हर शाम
तू मुझे निराश कर गया,
अम्मी-अब्बू तो
हो गये खामोश तेरे जाने से
मगर मेरा दिल तो
सवालों के शोर में
बिखरता चला गया
सबने कहा
तू गलत राह पर चला गया
लेकिन तू तो
मेरा हीरो था न
तो फिर
रास्ता कैसे भटक गया,
और फिर एक दिन
खबर आयी तेरी
कि तू अपने मुल्क से
द़गा कर गया
हमारी हर उम्मीद को
तोड़ देने वाला सख्स
एक दिन
न जाने कैसे
गद्दारों का वफादार बन गया,
हमें जीते जी
मारकर एक दिन
वो कारागार में
खुद़कुशी कर गया,
न जाने क्यूँ
वो रास्ता भटक गया???