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मिली साहा

Abstract Tragedy

4.5  

मिली साहा

Abstract Tragedy

कोरोना का कहर

कोरोना का कहर

3 mins
376


डर में ही बीत गया साल 2020 सोचा 2021 में तो राहत होगी,

करोना विकराल रूप मे आएगा किसी ने ये बात ना सोची होगी,


सामान्य हो रहा था जन जीवन लगा कोरोना अब तो चला जाएगा,

उम्मीद बढ़ चुकी थी सबकी कि देश हमारा कोरोना मुक्त जाएगा,

मास्क सैनिटाइजर को बेकार समझकर लापरवाह हो रहे थे लोग,

पर किसे पता था कि कोरोना प्रचंड रूप में फिर से वापस आएगा,


वार करने की घात लगाए कोरोना ना जाने कहां छिपकर बैठा था,

शायद हमारे लापरवाह होने का ही ये वायरस इंतजार कर रहा था,

कितने लोगों की गई जानें न जाने कितने ही परिवार तबाह हो गए,

लॉकडाउन की मुसीबतें झेली फिर भी ये इंसान नहीं समझ रहा था,


प्रकृति का संदेश लाया था कोरोना अब भी समय है संभल जाओ,

परिणाम इससे भी बुरा हो सकता है इसलिए वक्त पर जाग जाओ,

पर इंसानी जीवों को समझाना तो ईश्वर के बस की भी बात नहीं है

कोरोना ने किया अगला वार अब भुगतने के लिए तैयार हो जाओ,


समझा -समझा कर थक चुके इंसानों को दो गज की दूरी जरूरी है,

मास्क, सैनिटाइजर का करो इस्तेमाल स्वच्छता रखना भी जरूरी है,

बहुत आवश्यक हो तभी निकलो घर से बाहर बेमतलब में ना टहलो,

घर पर रहकर सुरक्षित रहो यही नियम अपनाना तो बेहद जरूरी है,


पर कुछ नासमझ समझ कर भी समझना नहीं चाहते इस बात को,

कोई नाक से नीचे, तो कोई गले में लटका कर घूम रहा मास्क को,

मास्क मजबूरी नहीं, जान बचाने के लिए जरूरी समझ कर पहनो,

थोड़ी सावधानी बरतो बचाओ खुद की और परिवार की जान को,


उससे पूछो हालात जिन्होंने अपनों को खोया है इस महामारी में,

पूछो उन प्रवासी मजदूरों से कितने कष्टों को सहा है महामारी में,

चल पड़े पैदल अपने ठांव ना भोजन ना पानी, ना थी कोई छांव,

कोई वाहन नहीं, पांव में पड़ गए छाले फिर भी चल रहे आस में,


आंखों में आंसू दिल में दर्द की गठरी उठाए पांव बस चल रहे थे,

लौटेंगे ना इस ओर फिर से हम लड़खड़ाते लफ़्ज़ों से कह रहे थे,

कितनों ने राह में तोड़ दिया दम टूटी आस राह तकने वालों की,

बिखरे कितने परिवार आ ना सके वो जिनकी आस लगा रहे थे,


फिर वही मंजर वही दर्द यह कोरोना वायरस क्या क्या दिखाएगा,

कितनों के घर करेगा बर्बाद और कितनों की जान लेकर जाएगा,

हवा में घोला कोरोना ने ज़हर सांस लेना तक हो गया है मुश्किल,

ऐसे ही दूर हो चुके हैं अपनों से हम और कितनी दूरी ये बढ़ाएगा,


कोरोना पीड़ित भटक रहे हैं इधर-उधर अस्पतालों में जगह नहीं है,

आर्थिक तंगी से गुज़र रहे जो लोग उनके लिए कहीं इलाज नहीं है,

श्मशान में जगह नहीं मुक्ति पाने के इंतजार में लाइन में पड़े हुए हैं,

ऐसी परिस्थिति हो गई तरस रहे इंसान पर इसकी कोई दवा नहीं है,


समझो यह बात जान है तभी तो जहान है अपनी सुरक्षा आप करो,

सही प्रकार से पहनो मास्क को घर पर रहो और स्वच्छता अपनाओ,

हाथ मिलाने की संस्कृति छोड़ अब दो गज की दूरी पे करो नमस्कार,

कोरोना को हराना है तो इन हथियारों के साथ हमें होना होगा तैयार।



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