कविता - वंदन वीरों का
कविता - वंदन वीरों का
आज़ादी का पन्ना पन्ना है गाथा बलिदानों की
त्याग समर्पण की प्रतिमूर्ति कहानी वीर जवानों की
संसद की एक एक ईंट बलिदानी रक्त से रंगी हुई है
अमर शहीदों की अस्थि पर नींव इसकी धरी हुई है
धर्म मजहबों को तज सब सबने केसरिया अपनाया था
पूरा भारत उस दिन एक बलिदानी खून में नहाया था
अमर तिरंगे में जिन बलिदानों के रक्त दिखाई देते हैं
अशोक चक्र की तीली में स्वर जिनके सुनायी देते हैं
आज उन्ही स्वरों का वंदन करने का शुभ दिन है।
आज उसी शोणित का पूजन करने का शुभ दिन है।।
आज़ादी की खातिर जो कफन बांध के चलते थे
अमर तिरंगा भारत का हाथों मे थाम के चलते थे
वे दधीच के सुत थे अस्थि देकर चले गए
परतंत्रता की जड़ों में बीज स्वतंत्रता के बोकर चले गए
बलिदानों की एक झलक तब झांसी ने भी देखी थी
मर्दानी ने अंग्रेजों संग जब होली खून की खेली थी
आज़ादी की खातिर जिसने उपनाम 'आज़ाद ' बताया था
वो भारत का सिंह सपूत तब देवलोक से आया था
वो मर्यादित भी था मानो वो शेषनाग अवतारी था
अपना सब कुछ खो बैठा, वो माता पर बलिहारी था
झांसी की रानी मर्दानी तब 'राम धनुर्धर'सी दिखती थी
शेखर की पिस्तौल तब 'चक्र सुदर्शन'सी चलती थी
आज उसी 'पिस्तौल' का वंदन करने का शुभ दिन है।
आज उसी 'मर्दानी' का पूजन करने का शुभ दिन है।।
जो हंसते हंसते फाँसी के फन्दों पर जाकर झूल गए
निज कर्त्तव्य धर्म अपना वो सब कुछ माँ पर भूल गए
उन बेटों ने माँ की आज़ादी का प्रण तब ठाना था
भारत माँ को जननी से देश को घर तब माना था
गुलामी युक्त धरा पर जिसने एक भूचाल ला दिया था
देश के तरुण वीरों में एक नया उबाल ला दिया था
जिनकी सिंह गर्जना से शत्रु भी कांपा करते थे
माँ के निश्छल बेटों से उनका रक्त जो मांगा करते थे
"तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा" का नारा
जिसने लगाया था
वो रौद्र रूप धारण कर तब' नेता जी ' बोस कहाया था
आज उसी' सुभाष ' को नमन करने का शुभ दिन है।
आज उसी ' भगत ' का वंदन करने का शुभ दिन है ।।
गौ माता के अपमानों का बदला जो लेकर चले गए
वो शहीद पांडे भारत को नया 'मंगल' देकर चले गए
अपनी सांसों से भी प्यारा जिसको इंकलाब था
वो भारत का गौरव 'बिस्मिल ' माँ का अनोखा लाल था
आज़ादी की अखंड आग में हर भारतीय ने हिस्सा लिया था
सिखों ने अपने दो-दो बेटो को जिंदा तब चिनवा दिया था
जिन वीरों का वरण करने में मृत्यु भी सकुचाती थी
दुल्हनी वेश में सजी खड़ी वो मन ही मन घबराती थी
रण क्षेत्र को अपलक निहार अविरल अश्रु बहाती थी
सागर से बहते अश्रु को रोक नहीं वो पाती थी
आज उसी 'पगड़ी' को नमन करने का शुभ दिन है।
आज उसी 'बिस्मिल' का वंदन करने का शुभ दिन है।।
अमर शहीदों का गायन रामायण कुरान सा लगता है,
लगता है मानो जैसे कोई तुलसी की माला भजता है,
जिनके दर्शन करने मात्र से सभी पाप कट जाते हैं,
जिनका वंदन करने को सभी एक राग हो जाते हैं ,
जिनकी अंतिम सांसों पर हिमालय से पर्वत झुक जाते हैं,
औऱ देवता देवलोक से उन पर पुष्प बरसाते हैं ,
आज उन्ही 'हिमालय सुतो' का वंदन करने का शुभ दिन है।
आज उन्ही वीरों का अभिनंदन करने का शुभ दिन है।।