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Akhtar Ali Shah

Abstract

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Akhtar Ali Shah

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माँ

माँ

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हर दुख का हरदर्द का जिसके पहलू में अवसान है।

माता बड़ी महान है लोगों माता बड़ी महान है ।।


माता की गोदी के आगे तुच्छ स्वर्ग का राज है। 

मूल्य न जाने माता का कितना बेवफा समाज है।। 

गम की गर्म हवाओं को जो आगे बढ़ सह लेती हैं।  

और खुशी के अमृत को जो परहित में दे देती है।। 


छाती से चिपकाए रखती सुत को स्वर्ग बताती है। 

खुद को धन्य समझती जब गोदी में उसको पाती है।।  

संतानों की विपदाओं को बनाकर ढाल वरा जिसने।

स्वयं उठाती रही कष्ट पर गुलशन किया हरा जिसने।।


परवशता के मूक दर्द को माँ ने ही पहचाना है । 

माँ हो जिसके पास ममत्व का देखा वहीं खजाना है।।

नजरों की भाषा को जिसने देकर शब्द संवारी है। 

फंसी भंवर में जीवन नौका जिसने पार उतारी है ।।


फर्क नहीं है माँ के सम्मुख अपने और पराये का। 

किसी गैर माँ की जाये का या खुद अपने जाये का।।  

ममता के उच्चासन पर मां अविचल रही खड़ी है ।

जीवन कादान दिया करती माँ दानी बहुत बड़ी है।।


काबा का हज माँ काशी का तीरथ माँ का ध्यान है । 

माता बड़ी महान है लोगों माता बड़ी महान है ।।


अवरोधों का दलदल मेट जग जननी माँ का संबल ।

दुनिया भर के दुख हर लेता देखो माता आँचल ।।

अपनी संतानों के खातिर हर पल कष्ट उठाती हैं ।

स्नेह सुधा अपने नयनों से रहती नित बरसाती है।।


जिसमें नए प्रयोग किए हैं त्याग और बलिदान के।

स्वागतार्थ नित नयन बिछाया जिसमें हर मेहमान के।।  

बन वितान छाया रहता है माता का आशीष जहाँ । 

क्या बिगाड़ पाएगा कोई संतानों का भाग्य वहाँ ।।


माँ का सबकुछ अपना है हमने यूँ ही पहचाना है।  

लेकिन अपना भी सबकुछ माँ का है क्या ये माना है।।

स्वार्थ साधते रहें सर्वदा सुत कलुषित आचार से ।

कलुष मुक्त कर देती पर माँ मन गंगा के प्यार से ।।


अपयश के बदले यश देकर ऊंचा सदा उठाया है । 

माँ को माँ के सिवा बताओ कौन समझने पाया है।।

पीकर पीर पराई हर पल पुलक प्रकट यूं करती है। 

पर हित ही पैदा होती जीवन जीती हैं मरती है ।। 


सब देकर भी तृप्त रहे अद्भुत कैसा बलिदान है ।

माता बड़ी महान है लोगों माता बड़ी महान है ।।


माँ तो माँ है उसके अहसानों का कर्ज चुकाएं हम ।

मन मंदिर की देवी माँ को आओ आज बनाए हम ।।

खुद गीले में रहकर के जो तरू सी छांव लुटाती है ।  

लूटा फलोंको फूलोंको सौरभ को अति सुख पाती है।।


जिसने एहसानों को अपने कभी नहीं एहसान कहा ।

सेवा में अर्पित कर जीवन सेवा को भगवान कहा ।। 

प्रभु करें कल्याण तुम्हारा दिल ने ये हर बार कहा ।

चाहे मन में दुख दर्दों का तेज बहुत तूफान रहा ।।


बनकर रक्त भ्रमण करता है मां का दूध दुलार का ।

धड़कन तन की कर्ज"अनंत"माँ के पावन प्यार का।।

मर मर कर भी हंसकर जिसने जीवन सदा जीया है ।

जिसने दामन में अश्क समेटे उफ तक नहीं किया है।।


छांया सी जो साथ रही है हरदम की अगुवाई है ।

मातृ शक्ति के आगे हर शक्ति बोनी कहलाई है ।।

जीवन क्या वोजो माता के काम नहीं आ पायेगा।  

ऐसा नर पैदा होकर धोखे ही धोखे खाएगा ।।


ईश्वर भी माँ माँ ईश्वर के रूपों की पहचान है ।

माता बड़ी महान है लोगों, माता बड़ी महान है ।।

  



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