गुणी दीपा
गुणी दीपा
एक सांवली लड़की जो दुबली पतली मलीन सी दिखती थी। उसके बाह्य सौंदर्य मैं कहीं से भी आकर्षण नहीं दिखता था लेकिन गुणी बहुत थी और नाम था --दीपा । नाम का असर उसके व्यक्तित्व को सार्थक कर रहा था वह आज्ञाकारी ,कर्मठ ,व्यवहार कुशल और मृदुभाषी थी । उम्र 17 के आसपास लेकिन शरीर की बनावट उसकी उम्र को भी बयां नहीं कर रही थी यानि तेरह के आसपास दिखती थी । घर में मां, उसका बड़ा भाई , बड़े भाई की पत्नी भाभी और दो बच्चे थे । पिता का देहांत हुए एक अरसा बीत गया था । मां धार्मिक प्रवृत्ति की घरेलू महिला थी ।.भाई नौकरी करता था और अक्सर घर से बाहर रहता था ,आमद अच्छी थी ।भाभी घर में रहती थी और उसके दो बच्चे थे सबके देखभाल की जिम्मेदारी दीपा की थी वह सुबह से शाम तक काम में व्यस्त रहती थी ना खाने की सुध न पीने की चिन्ता सिर्फ काम और काम करती रहती थी। वह सब को खुश रखना चाहती थी शायद इसी वजह से उसके शरीर का विकास उसके वय के अनुरूप नहीं हो पाया था ।धीरे धीरे दीपा शादी के योग्य हुई। भारतीय संस्कृति में पाणिग्रहण सोलह संस्कारों में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है ।।दीपा की मां अक्सर बेटे से दीपा की शादी को लेकर चिंता करती थी। दीपा का भाई प्रदीप भी आज्ञाकारी था और मां की चिंता से अवगत था । वह दो.- तीन रिश्ता भी ढूंढ कर लाया ।बात दान दहेज जैसे अभिशाप से बढ़ते हुए लड़की देखने तक आ पहुंची लेकिन सौन्दर्यप्रेमी लोग उसे पसंद नहीं करते थे और भला बुरा कह कर चले जाते थे। दीपा की भाभी श्वेता जो स्वभाव से अक्खड़ और कठोर थी और दीपा पर टूट पडती थी । वह उसको बहुतृ भला बुरा कहती । प्रत्यक्षतः वह यह भी नहीं सोचती कि दीपा की मनःस्थिति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा ।
समय बीतता गया श्वेता (भाभी) के ताने कठोर व्यवहार श्वेता के स्वभाव बनते गये। अब वह छोटी छोटी बातों को नजरंदाज करने के बजाय तिल का ताड बना देती लेकिन दीपा ने अपने ऊपर इसका कोई असर नहीं होने दिया। दीपा की मां धार्मिक महिला थी और नित्य गोपाल जी की मंदिर जाया करती.थी।अब बहुत व्याकुल.रहने लगी् ।एक बेटी की शादी की चिंता ऊपर से बहू काव्यवहार ।वह विवश थी लेकिन श्री्नाथ जी के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा थी। वह याचक भाव से मंदिर जाती थी ।एक दिन जब वह मंदिर से बाहर निकल ही रही थी कि एक मोटर कार उनके आगे आकर रूकी, एक महिला जो दिखने में संभ्रांत दिख रही थी उसने प्रदीप के घर का पता पूछा। माँ ने.पता बताया और पीछे पीछे घर की तरफ चल पडी ।
घर में देखा कि वह संभ्रांत महिला जिसका नाम शांता था सोफे पर बैठ कर प्रदीप से बात कर रही है और दीपा चाय का कप उस महिला की तरफ से बढ़ा रही है । शांता ने पूछा "क्या नाम है, बेटी तुम्हारा ", "जी दीपा" --दीपा ने अपनी मधुर वाणी में जवाब दिया ।" चाय तुमने बनाया बेटी ", "जी ', शरमाते हुए लेकिन विनम्रता के साथ दीपा ने कहा । "चाय बहुत अच्छी है" विश्वास भाव से शांता ने कहा। "खाना भी अच्छा बनाती होगी।इसकी आवाज इतनी अच्छी है कि मन करता है की बातें करते रहूँ। बेटी मेरे पास आओ दूर क्यों खड़ी हो" दीपा शिष्टता के साथ शांता जी के पास बैठ गयी । "प्रदीप तुम क्या देख रहे हो, तैयारी शुरू.करो" ---शांता जी ने सहमति भाव से कहा । तभी मां के मुंह से अचानक निकल पड़ा "मेरी.दीपा आपको पसंद है ?" "जी" ----- शांता ने कहा । लेकिन यह तो.............माँ.ने संशय पूर्वक पूछा.............."नही नही.मेरी दीपा बहुत गुणी है बहन.जी।" "मेरी सारी तमन्ना दीपा को पाकर पूरी.हो गयी। रूप और गुण के इस द्वन्द्व मे मैने गुण को प्रधानता दिया है।.रूप को सौन्दर्य प्रसाधन से निखारा जा सकता है.ये बाह्य है लेकिन गुण आंतरिक होता है जो दिखता नहीं है वरन देखना पडता है.....मुझे मेरी गुणी दीपा मिल गयी".....लम्बी सांस भरते हुए शांता जी ने कहा।अब दीपा अमीर परिवार की एकलौती बहू थी।