"प्रकृती "
"प्रकृती "
क्यूँ ना आज प्रकृति को याद करें ?
देती हैं, इतनी सीख और विचार
क्यूँ ना उसे धन्यवाद् करें ?
चलो आज एक नयी प्रार्थना करें,
त्याग, धैर्य, अनुशासन और समपर्ण से
अपने संस्कारों को सीचते चले।
लोभ, मोह, स्वार्थ और क्रोध को छोड़ते
चलो हम प्रकृति से कुछ सीखते चले।
कहती है ये !
पेड़ों से सीख, ऊँचाइयों को छूना
कलियों से मुस्कुरा कर जीना।
सीख तू पत्तों से झूमते रहना,
काँटे सिखाती हर मुसीबत से उबरना।
टहनियाँ ही हैं, जो बताती
दूसरों को सहारा देना।
प्रकृति की सुन्दरता देख,
हैं ये जीवन का आधार,
हे मानव ! विनती है ये तुझसे
ना कर दुश्कर्म, ना बढ़ा पाप,
और ही ना कर खिलवाड़।