STORYMIRROR

Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Tragedy Fantasy

4  

Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Tragedy Fantasy

सैडिस्ट

सैडिस्ट

2 mins
218

शायद मैं सैडिस्ट हूँ,

कि जब भी एकांत के साथ

अपने अतीत में होती हूँ

कुछ कुछ मुस्कराती रहती हूँ

वक्त से नजरें चुराते हुए

खुद से झूठ पर झूठ कहती हूँ,

कि एकांत में बहुत गर्द है

कि यहां आते ही

आंख में हमेशा तिनका

पड़ जाता है।

जब अतीत जीवंत हो

समय के उड़ते पन्नों पर

सिनेमा सा उतर आता है,

पल में ही उनमें गुम हो जाती हूँ

बहुत से प्यारे लोग, खूबसूरत मंजर

और बेहतरीन अहसासों को

नजरों से टटोलती हूँ,

उलटती पलटती रहती हूँ,

फ्रेम जैसे पन्ने,

जो जरा भी बचा हुआ लगता है

उसे सहेज लेती हूँ

जो कुछ उलझे-बिखरे, फटे पन्नों से

दिखते हैं उन्हें यादों की

गठरी में बांध

रख देती हूँ ।

यकीनन

लोग खुश होते

जो उनके पास मेरी तरह

सहेजा हुआ बहुत कुछ होता,

मगर शायद मैं

खुद के लिए सैडिस्ट हूं

या जाने क्या हूं

कि एकांत में मेरा

ध्यान सिर्फ

इसी एक छोटी सी

गठरी पर टिक जाता है

जिसे बार बार देख कर

सोच समझकर कर भी

कुछ कर नहीं पाती हूँ

फिर हमेशा की तरह

उस एकांत में मुस्कराती हूँ।

रख देती हूँ

वही गठरी ऐसी जगह

जहां न चाहूं तो भी नजर पड़े,

कई कई बार,

हर बार उसे रखते, टटोलते

एकाएक आंख में

फिर कुछ पड़ जाता है।

हंसती हूँ

फिर खुद पर ही

कि दिल की अज़ीज़ गठरी

रखती भी तो वहीं हूँ

जहां यादों का गर्द और गुबार

फैला ही रहता है।

वाकई अपने लिए

सैडिस्ट हूँ मैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract