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Kunda Shamkuwar

Abstract Fantasy

4  

Kunda Shamkuwar

Abstract Fantasy

डस्टबिन

डस्टबिन

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'कविताएँ जिंदा रहेंगी

मेरी कविताएँ जिंदा रहेंगी

मेरी यह कविताएँ जिंदा रहेगी.....'


कवि ने कविता कहना शुरू किया

लेकिन यह क्या ?

कुछ लोग कवि का मज़ाक उड़ाने लग गये

उनको कवि के जज़्बात की क्या कदर ?


उनकी निगाहों में तो कवि

कुछ अजीब होते हैं

जो किताबों के पन्नों में रखे हुए

गुलाब के ऊपर भी कविता लिख लेते हैं


हाँ, उन सूखे गुलाब की भुली बिसरी

यादों पर भी वे कविता लिख लेते है

क्या कभी त्रिकोण का चौथा कोण भी होता है ?

नहीं न ? लेकिन कवि त्रिकोण के

उस चौथे कोण पर कविता लिखते हैं


सच मे कवि अजीब होते हैं 

वे चाँद को भी प्रेमियों का गवाह बनाते हैं

पेड़ों के बीच झाँकते हुए चाँद पर तो क्या

कवि हरे पत्तों के बीच इक्के दुक्के

सूखे पत्ते पर भी कविता करते हैं


कवि की निगाहों को क्या ?

उन्हें कुछ नज़र आ जाएँ और

वह ना लिखे ऐसा तो कभी नहीं होता


उन्हें रोटी में भी चाँद नज़र आता है

और अँधेरे में जलती मोमबत्ती में सूरज !

लोग कवियों का मज़ाक उड़ाते हैं

किसी ने यूँही एक कवि को कह दिया


'कभी डस्टबिन पर भी कोई कविता लिख दो.....'

कवि तो कवि था

उसने वाकई डस्टबिन पर लिखना शुरू किया

लोगों के लिए डस्टबिन बस एक डस्टबिन हो सकती है


क्यों, क्या वह नीलकण्ठ नहीं ?

वह भी तो बेकार और फ़ालतू चीजों को

खुद में समाहित कर हमारा परिवेश साफ़ करती है

वे लोग क्या जाने जिंदगी में डस्टबिन की अहमियत ?


शायद अनजाने में वे उस नीलकण्ठ सी

डस्टबिन को हिक़ारत से देखते हैं

और भी न जाने क्या


सदियों से आज तक क्या कवि

कभी आम लोगों जैसे रहे है ?

नहीं ! और ना ही कभी आगे रहेंगे....


सचमुच कवि अजीब ही तो होते है

और उनकी कविताएँ ?

वे तो हमेशा जिंदा रहती है......

कविताएँ क्या कभी मर सकती है भला ?

कुछ कविताएँ तो कालजयी होती है !

और आम लोग ?

उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो......

और आप तो जानते ही है

कीड़े मकौड़ों की कोई जिंदगी नहीं होती है !


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