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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Others

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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Others

ख़ामोशियाँ

ख़ामोशियाँ

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कहने के लिए न जाने कितनी बातें थी…

लेकिन उसने ख़ामोशी अख्तियार कर ली थी…

शायद उसने कहीं पढ़ा था कि खामोशी सब कुछ कह देती है…

लेकिन…

वह भूल गयी थी की जब कोई सुननेवाला ही ना हो तब ख़ामोशी भी क्या करेगी ? 

ख़ामोशी भी किसे कहे? कैसे कहे? क्या कहे? 

लेकिन वह चला गया था…

लौट कर कभी न वापस आने के लिए.... 

एकदम से जैसे वक़्त ही बदल गया.... 

पल भर में क्या से क्या कुछ हो गया.... 

बार बार उसका हाथ मोबाइल की तरफ़ जाने लगा...

लेकिन पहले मैं क्यों?

व्हाई नॉट ही?

इन गड्ड मड्ड ख़याल में हाथ बिना डायल किये पीछे आ गया ....

आख़िर वह क्या चीज़ होती है जो हमें किसी के करीब ले जाती है

या एकदम से छिटक कर दूर देती है....?

जैसे नदी में एक तरफ डूबती किश्तियाँ और एक तरफ़ हम हो.... 

यहाँ नदी भी वही है.... 

वह भी वही है.... 

और किश्ती भी वही है.... 

शायद सब कुछ वही है... 

लेकिन कुछ तो है जो पास आते आते छिटक कर चला गया है....

कोई नहीं जानता की छिटक कर किधर गया है....

खामोश निगाहें जानती है कि हाथ खाली है.... 

अब साथ में कुछ भी नहीं रहा है...


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