खुद से मुलाकात
खुद से मुलाकात
कभी-कभी मन करता है खुद से करूँ मुलाकात,
वर्षों से झाँका नहीं अपने अंदर देखूँ तो कैसे हैं हालात,
दुनिया की उलझनों से दूर मुसकुराऊँ खुली हवा में,
तन्हाई की दहलीज़ पर कुछ वक्त बिताऊँ अपने साथ,
जगाऊँ उन सपनों को जो दफ़न है मन के किसी कोने में,
देखूँ तो ज़रा क्या आज भी उन सपनों में है वही रंगो भरी बात,
वक्त के आईने में निहार लूँ कुछ देर अपना किरदार,
ढूँढ सकूँ अपने वजूद को शायद वक्त ही दे दे कोई सौगात,
खुद का होकर खुद में खोकर कुछ पल खुद में ही लीन हो जाऊँ,
जहाँ न कोई दिल तोड़े न ही उदासी हो और न बिखरे मेरे जज़्बात,
खुद से आज मिलकर खुद का खुद से ही परिचय मैं करवाऊँ,
तेरा, मेरा, इसका, उसका छोड़कर आज बस खुद की करूँ बात,
बहुत दौड़ी ख़्वाहिशों के पीछे "मिली" अब ठहरना है खुद के लिए,
जहाँ महसूस करूँ खुद को समझ सकूँ थामकर अपना ही हाथ।।