STORYMIRROR

Himanshu Sharma

Abstract

4  

Himanshu Sharma

Abstract

सफ़ीने और तूफाँ

सफ़ीने और तूफाँ

1 min
394

ज़िन्दगी के किनारों पे भी सफ़ीने डूब जाते हैं,

यहाँ लहरें भी उठतीं हैं और तूफाँ भी आते हैं !


जज़्बातों के साथ ज़रूरी है, ज़ोर-ऐ-दस्त भी,

न हो दोनों में से एक भी तो लोग मात खाते हैं !


शक़ रोग है रिश्तों का इसे ख़ुद से दूर ही रखो,

शक़ में पड़े हुए रिश्ते, तो अक़्सर टूट जाते हैं !


ख़ुशियाँ जो मिलती है तो बाग़-बाग़ हो जाता है,

ग़म कभी आये तो मुसलसल नश्तर चुभाते हैं !


अब्र भी छू जाती है ज़िन्दगी और गर्दिशों को भी,

ज़िन्दगी के हर पल आकर के हमें आज़माते हैं !


कभी-कभी ज़िन्दगी में तूफाँ आते हैं मुसलसल,

लगता है तूफाँ सफ़ीने से आ के रिश्ते निभाते हैं !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract