सफ़ीने और तूफाँ
सफ़ीने और तूफाँ
ज़िन्दगी के किनारों पे भी सफ़ीने डूब जाते हैं,
यहाँ लहरें भी उठतीं हैं और तूफाँ भी आते हैं !
जज़्बातों के साथ ज़रूरी है, ज़ोर-ऐ-दस्त भी,
न हो दोनों में से एक भी तो लोग मात खाते हैं !
शक़ रोग है रिश्तों का इसे ख़ुद से दूर ही रखो,
शक़ में पड़े हुए रिश्ते, तो अक़्सर टूट जाते हैं !
ख़ुशियाँ जो मिलती है तो बाग़-बाग़ हो जाता है,
ग़म कभी आये तो मुसलसल नश्तर चुभाते हैं !
अब्र भी छू जाती है ज़िन्दगी और गर्दिशों को भी,
ज़िन्दगी के हर पल आकर के हमें आज़माते हैं !
कभी-कभी ज़िन्दगी में तूफाँ आते हैं मुसलसल,
लगता है तूफाँ सफ़ीने से आ के रिश्ते निभाते हैं !
