चंद्र-यान
चंद्र-यान
विश्व, ताकता रहा था चाँद,
तब भारत ने, भरी छलाँग!
देश छू रहा था नए आयाम,
प्रक्षेपण को था ये चंद्र-यान!
इस यान को ले हँसा पश्चिम,
तंज के सर्प से, डसा पश्चिम!
हुआ प्रक्षेपण चला फिर यान,
छूने को पुनः, ये नए आयाम!
दिन बीते, और, बीते थे मास,
यानोन्मुख था करने चँद्रप्रवास!
जल्दी ही वो, दिन भी आया,
यान को जब था चाँद सुहाया!
चाँद का फिर आवर्त किया,
फिर उतरने को उद्यत हुआ!
उतरा वो फिर सुदूर दक्षिण में,
न किया प्रहसन फिर पश्चिम ने!
हरेक प्रशंसा कर न अघाता था,
देश पुनः अब भाग्य-विधाता था!