सहर
सहर
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जाने क्या हुआ कि शब-भर रोई थी सहर,
पशेमाँ थी बहुत न इक पल सोई थी सहर!
परिंदों ने भी सदा देकर न बुलाया उसको,
जाने रूठकर फिर से कहाँ खोई थी सहर!
लोगों ने समझा था रात को बारिश हुई थी,
ना-मालूम लोगों कि शबनम रोई थी सहर!