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Himanshu Sharma

Others

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Himanshu Sharma

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सहर

सहर

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जाने क्या हुआ कि शब-भर रोई थी सहर,

पशेमाँ थी बहुत न इक पल सोई थी सहर!


परिंदों ने भी सदा देकर न बुलाया उसको,

जाने रूठकर फिर से कहाँ खोई थी सहर!


लोगों ने समझा था रात को बारिश हुई थी,

ना-मालूम लोगों कि शबनम रोई थी सहर!


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